विवेंद्र सिंह पंवार ने दिया उत्तराखंड क्रांति दल के संरक्षक पद से इस्तीफा, जाने वजह
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देहरादून। उत्तराखंड क्रांति दल के विवेन्द्र सिंह पंवार ने दिया सरंक्षक पद से इस्तीफा। उन्होंने कहा की पिछले दिनों सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल को जिस तरह से आमजन ने नकारा वह हमारे लिए बहुत ही चिंता की बात बन गया है। हमे बहुत अच्छे प्रदर्शन की तो नहीं, पर इस तरह के निराशाजनक प्रदर्शन की भी उम्मीद नहीं थी। हमें लगता था कि कम से कम पार्टी तीन-चार सीट अवश्य ही जीतेगी । इस प्रदर्शन की बदौलत पार्टी व कार्यकर्ताओं को एक नई राजनैतिक ताकत मिलेगी। जिसके आधार पर हम खुद को आने वाले हर तरह के चुनावों के लिए मजबूत कर सकते हैं। पर विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने हमारी आशाओं पर जिस तरह से तुषारापात किया, उसने हमे व पूरी पार्टी को चिंता में डाल दिया है।
आगे उन्होंने कहा की- विधानसभा चुनाव में पार्टी के लचर प्रदर्शन के लिए पार्टी नेतृत्व की सामूहिकता को स्वीकार करते हुए मैं उत्तराखंड क्रांति दल के संरक्षक पद से त्यागपत्र दे रहा हूं। मुझे लगता है कि पिछले पाँच साल में एक विपक्षी पार्टी के तौर पर हम जनता के बीच उत्तराखंड के सवालों व मुद्दों को लेकर उस तरह से सक्रिय नहीं हो पाए जिस तरह से होना चाहिए था। संगठन के स्तर पर भी हम पार्टी को वह मजबूती नहीं दे पाए जो दी जानी चाहिए थी। आमजन के बीच में अपनी बात न पहुंचा पाने के कारण विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार भी महत्वपूर्ण कारक रहा है। विधानसभा के 5 मै० लगातार हम राजनैतिक तौर पर कमजोर होते रहे हैं। अब वक्त है कि इस पर बहुत ही गम्भीरता के साथ न केवल मनन किया जाय, बल्कि उसे धरातल पर भी उतारा जाना चाहिए। राज्य बनने के बाद दो दशक में हमने निरन्तर जनता का विश्वास खोया है।
गौरतलब है की उन्होंने पार्टी को मिली इस हार की वजह के जवाब में कहा की- मैं मानता हूँ कि इस युवाओं व महिलाओं के बीच पार्टी को नहीं पहुंचा पाए। चुनाव में यह वर्ग हमेशासे निर्णायक रहा है। मेरा राज्य के युवाओं से आह्वान है कि राज्य व अपना भविष्य बचाना चाहते हैं और रोजगार के लिए पलायन की सदी से बचना चाहते हैं कि राष्ट्रीय दलों के मोह से जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी बाहर निकले और क्षेत्रीय दल को मजबूत करें ताकि हर निर्णय के लिए दिल्ली के नेताओं की न ताकना पड़े।
राज्य में भाजपा और कांग्रेस की और से जो भी व्यक्ति मुख्यमंत्री के तौर पर मनोनीत किया जाता है वह हर निर्णय के लिए अपनी पार्टी के दिल्ली के नेताओं के ऊपर ही निर्भर रहता है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके पास इतना अधिकार नहीं होता कि वह अपने मन मुताबिक किसी भी तरह का निर्णय कर सकें। यहां के चुने हुए विधायक कितने लाधार होते हैं यह हमेशा देखने में आता है। पूर्ण बहुमत के बाद भी भाजपा व कांग्रेस के विधायकों को यह अधिकार नहीं होता कि वे अपने विधायक दल के नेता का चुनाव कर सके। पूर्ण बहुमत के साथ फिर से सत्ता में लौटी भाजपा के 47 विधायक अपना विधायक दल का नेता तक नहीं चुन सके। इसके लिए उन्हें अपने दिल्ली के नेताओं के आदेशों का इंतजार करना पड़ा। जो निर्णय उन्होंने किया उसे ही उन्हें स्वीकार करना पड़ा। मुख्यमंत्री पद पर बैठने वाला व्यक्ति ना तो किसी को अपने मन से मंत्री बना सकता है और ना ही उन्हें विभागों का आवंटन कर सकता है।
जो व्यक्ति मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करके किसे मंत्री बनाना है और किसे कौन सा विभाग देना है यह तक निर्णय नहीं कर सकता तो क्या ऐसे लोग राज्य के विकास की नींव रख सकते हैं? इस सवाल के बारे में यहां के युवाओं को गंभीरता से सोचना होगा। मैं चाहता हूं कि राज्य के युवा अपने क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल के साथ जुड़े और इसे राजनीतिक तौर पर मजबूत करे ताकि राज्य का एक खुशहाल भविष्य लिखा जा सके। पार्टी में दूसरे वरिष्ठ साथियों को भी इस बारे में गंभीरता से चिंतन मनन करना होगा। -विवेंद्र सिंह पंवार
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