उत्तराखंड

हरि सिंह नलवा: जिनके नाम से कांपते थे नाम से कांपते थे अफगान, अफगानिस्तान की सरजमीं पर जीते कई युद्ध

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नई दिल्ली. साम्राज्यों का कब्रिस्तान कहे जाने वाले अफगानिस्तान (Afghanistan) पर पूरी तरह आज तक कोई फतह हासिल नहीं कर सका. यहां तक कि हाल के समय में सोवियत संघ और अमेरिका जैसी बड़ी शक्तियों को भी वापसी की राह देखनी पड़ी. ऐसे में इतिहास से एक नाम उठता है, जिन्होंने अफगानिस्तान के बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण भी किया और सबसे बड़े सिख योद्धा कहलाए. इनका नाम हरि सिंह नलवा है, जिनके नाम से अफगानिस्तान के बड़े सूरमा भी डरते थे. साल 2013 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में स्टांप भी जारी किया था.

कौन थे हरि सिंह नलवा
वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना के सबसे भरोसेमंद कमांडर थे. वे कश्मीर, हजारा और पेशावर के गवर्नर भी रहे. उन्होंने कई अफगानों को परास्त किया और अफगानिस्तान की सीमा समेत कई इलाकों पर नियंत्रण हासिल किया. नलवा ने खैबर पास के जरिए अफगानों को पंजाब में प्रवेश करने से रोका. 19 सदी की शुरुआत तक विदेशी आक्रमणकर्ताओं की तरफ से इसे भारत में आने का मुख्य रास्ता कहा जाता था.

गुरु नानक दे यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉक्टर एसपी सिंह बताते हैं कि अफगानिस्तान को ऐसा क्षेत्र कहा जाता था, जिसे कोई जीत नहीं सका था. वे हरि सिंह नलवा ही थे, जिन्होंने अफगानिस्तान की सीमा और खैबर पास पर नियंत्रण के जरिए कई अफगानों को उत्तर-पश्चिम सीमा को नुकसान पहुंचाने से रोका था. जानकारों बताते हैं कि उनकी मौत जमरूद की जंग में हो गई थी.

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क्यों डरते थे अफगान
इतिहासकार डॉक्टर सतीश के कपूर बताते हैं, ‘हरि सिंह नलवा ने अफगानों के खिलाफ काफी जंग लड़ी, जिनमें अफगानों को कई इलाकों पर नियंत्रण खना पड़ा. इनमें से ज्यादातक जंगें नलवा के नेतृत्व में ही लड़ी गई थीं.’ कपूर 1807 में कसूर, 1813 में अटक, 1818 में पेशावर की जंग और 1837 में जमरूद पर नियंत्रण हासिल करने का जिक्र करते हैं. उन्होंने कहा, ‘अफगानों के खिलाफ ऐसी जीतों के चलते ही अफगानों में नलवा का डर बैठ गया था. इसके चलते ही माताएं भी परेशान करते छोटे बच्चों के सामने उनका नाम लेती थीं.’

भारत के लिए क्यों अहम थी नलवा की जीत
इतिहासकारों का मानना है कि अगर महाराजा रणजीत सिंह और उनके कमांडर हरि सिंह नलवा पेशावर और उत्तर-पश्चिमी सीमा क्षेत्र नहीं जीतते, तो यह इलाका अफगानिस्तान का हो सकता था और पंजाब और दिल्ली में अफगानों के आक्रमण कभी नहीं रुकते. जमरूद की जंग में वे गंभीर रूप से घायल होने के बाद उनकी मौत हो गई थी. पर मौत से पहले उन्होंने अपनी सेना को उनके निधन की खबर तब तक सार्वजनिक नहीं करने के लिए कहा था, जब तक बल उनका समर्थन के लिए लाहौर न पहुंच जाएं.. कहा जाता है कि सिख सेना ने युद्ध के दौरान उनके शरीर को इस तरह से उठा लिया था कि दुश्मनों को लगे कि वे आसपास ही हैं.

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