उत्तराखंड

उत्तराखंड : टिहरी में इंसानों और तेंदुओं के बीच बना तालमेल, जानिए कैसे कम हुए खूनी संघर्ष

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टिहरी गढ़वाल. गुलदार यानी तेंदुए और आदमी के बीच संघर्ष की घटनाएं पहाड़ों में लगातार बढ़ीं तो इनकी रोकथाम के लिए वन विभाग ने एक पहल की थी. लिविंग विद लेपर्ड प्रोग्राम को शुरू किए चार साल हो चुके हैं और अब इसका असर देखने को मिल रहा है. टिहरी क्षेत्र में 2017 में शुरू किए गए इस प्रोग्राम से गुलदार और आदमी के बीच संघर्ष की घटनाओं में कमी तो देखी ही गई है, लोगों में भी अवेयरनेस देखी जा रही है. टिहरी ज़िले में वन विभाग ने अपने इस कार्यक्रम के बारे में कुछ आंकड़े साझा किए हैं, ​जो बताते हैं कि यह कार्यक्रम किस तरह स्थानीय लोगों के लिए फायदेमंद रहा.

टिहरी में वर्ष 2000 से आंकड़े देखे जाएं तो गुलदार और मनुष्यों के बीच संघर्ष की कुल 161 घटनाएं हुईं, जिनमें 35 लोग अपनी जान गंवा चुके और 126 लोग घायल हुए. सबसे ज़्यादा घटनाएं वर्ष 2002 में कुल 16 थी, जिसमें 14 घायल जबकि 2 मौतें हुई थीं. वन विभाग ने वर्ष 2017 में महाराष्ट्र फोरेस्ट डिपार्टमेंट और एक निजी संस्था के साथ मिलकर लिविंग विद लेपर्ड प्रोग्राम चलाया. यह कार्यक्रम क्या है और इसका कैसे असर हुआ, जानिए.

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फॉरेस्ट विभाग ने लिविंग विद लेपर्ड कार्यक्रम के दौरान स्कूली बच्चों को पोस्टरों, नुक्कड़ सभाओं व अन्य तरीकों से तेंदुओं के बारे में जागरूक किया.

क्या है लिविंग विद लेपर्ड प्रोग्राम?
मनुष्यों को अपने व्यवहार में चेंज लाने के साथ ही वन विभाग कर्मचारियों को रेस्क्यू ट्रेनिंग, एडवांस इक्विपमेंट्स ट्रेनिंग और स्कूलों में बच्चों को जागरूक किया गया, जिसका मुख्य फोकस लोगों को जागरूक करके संघर्ष की घटनाओं को कम करना रहा. इस प्रोग्राम के तहत स्कूली बच्चों पर विभाग ने विशेष फोकस रखा. डॉक्युमेंट्री, सीरियल, नुक्कड़ सभाओं के ज़रिए स्कूलों में जाकर बच्चों को गुलदार के नेचर के बारे में जागरूक किया गया, जिससे बच्चे ज्यादा से ज्यादा इसका प्रचार प्रसार करें.

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कैसे फायदेमंद साबित हुआ प्रोग्राम?
2017 के बाद से गुलदार और मनुष्यों के बीच संघर्ष की घटनाओं में कमी देखी गई. 2018 में कुल 8 घटनाएं हुईं, तो 2019 में 0, 2020 में 4 घटनाएं और 2021 में अभी तक सिर्फ एक ही घटना सामने आई है. ध्यान रखें कि ये आंकड़े टिहरी क्षेत्र के हैं, जबकि उत्तराखंड के अन्य पहाड़ी ज़िलों में भी गुलदार संबंधी घटनाएं होती रही हैं. ​वन विभाग का दावा है कि टिहरी में लिविंग विद लेपर्ड प्रोग्राम से लोगों ने गुलदार को समझना सीखा, जिससे संघर्ष कम हुआ.

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